#Yo Yo टेस्ट क्या है और क्रिकेट में इसकी अहमियत

 Yo Yo टेस्ट क्या है और क्रिकेट में इसकी अहमियत

क्रिकेट आज सिर्फ़ एक खेल नहीं बल्कि फिटनेस, मानसिक ताक़त और लगातार मेहनत का मिश्रण बन चुका है। पहले जहाँ खिलाड़ियों की चयन प्रक्रिया सिर्फ़ बल्लेबाज़ी, गेंदबाज़ी या फ़ील्डिंग पर आधारित होती थी, वहीं अब फिटनेस टेस्ट भी उतना ही महत्वपूर्ण हो गया है। इन्हीं फिटनेस टेस्ट में सबसे ज़्यादा चर्चित है “Yo Yo टेस्ट”।

Yo Yo टेस्ट क्या है?

Yo Yo टेस्ट एक तरह का फिटनेस और सहनशक्ति मापने का टेस्ट है। इसे डेनमार्क के वैज्ञानिक डॉ. जेन्स बैंग्स्बो ने विकसित किया था। इस टेस्ट में खिलाड़ी को दो मार्क (cones) के बीच आगे-पीछे दौड़ना होता है।

यह दौड़ 20 मीटर की दूरी पर होती है।

एक बीप (beep sound) बजता है और खिलाड़ी को उस समय तक मार्क तक पहुँचना होता है।

जैसे-जैसे लेवल बढ़ता है, स्पीड और टाइमिंग दोनों तेज़ होते जाते हैं।

अगर खिलाड़ी बीप से पहले लाइन पर नहीं पहुँच पाता, तो उसे चेतावनी मिलती है। दो बार फेल होने पर खिलाड़ी टेस्ट से बाहर हो जाता है।

इसका उद्देश्य क्या है?

खिलाड़ी की सहनशक्ति (endurance) को मापना।

यह देखना कि खिलाड़ी लंबे समय तक कितनी तेज़ी और ऊर्जा से खेल सकता है।

क्रिकेट जैसे खेल में लगातार दौड़ने, भागने और स्टैमिना बनाए रखने की क्षमता का पता चलता है।

Yo Yo टेस्ट का स्कोर कैसे निकलता है?

Yo Yo टेस्ट में स्कोर खिलाड़ी की लेवल और दूरी पर निर्भर करता है।

उदाहरण:

अगर कोई खिलाड़ी लेवल 16 तक पहुँचता है तो उसका स्कोर लगभग 16.1 या 16.5 लिखा जाता है।

भारत में सामान्यत: 16.1 स्कोर पासिंग मार्क माना जाता है।

भारतीय क्रिकेट में Yo Yo टेस्ट

भारतीय क्रिकेट टीम में Yo Yo टेस्ट की अहमियत 2017 में तब बढ़ी जब अनिल कुंबले और फिर रवि शास्त्री के कोचिंग दौर में इसे लागू किया गया।

विराट कोहली ने इसे काफ़ी सख़्ती से लागू किया और खुद को Yo Yo टेस्ट का सबसे बड़ा उदाहरण साबित किया।

आज टीम इंडिया के हर खिलाड़ी को चयन से पहले यह टेस्ट पास करना होता है।

खिलाड़ियों के स्कोर

विराट कोहली: 19 के आसपास

मनीष पांडे: 19.2 (अब तक सबसे ऊँचा)

हार्दिक पांड्या, रोहित शर्मा और केएल राहुल भी आसानी से पास करते हैं।

लेकिन युवराज सिंह और सुरेश रैना जैसे कुछ दिग्गज खिलाड़ी इस टेस्ट में फेल होने की वजह से टीम से बाहर भी हो चुके हैं।

क्यों है Yo Yo टेस्ट ज़रूरी?

मैच फिटनेस का पैमाना – केवल नेट प्रैक्टिस से यह साबित नहीं होता कि खिलाड़ी 50 ओवर या 5 दिन तक खेल सकता है।

इंजरी से बचाव – फिटनेस लेवल सही रहने से चोट का खतरा कम होता है।

फील्डिंग में सुधार – बेहतर स्टैमिना से फील्डिंग क्वालिटी बढ़ती है।

निष्पक्ष चयन प्रक्रिया – फिटनेस पर कोई समझौता नहीं, जिससे सभी खिलाड़ियों को बराबरी का मौका मिलता है।

विवाद और आलोचना

हालाँकि Yo Yo टेस्ट को लेकर विवाद भी रहे हैं:

कई दिग्गजों का कहना है कि केवल इस टेस्ट पर चयन नहीं होना चाहिए।

कुछ खिलाड़ी मानते हैं कि उनकी बल्लेबाज़ी या गेंदबाज़ी स्किल्स Yo Yo टेस्ट से नहीं मापी जा सकतीं।

2018 में मोहम्मद शमी और संजू सैमसन को सिर्फ़ इसी टेस्ट में फेल होने के कारण बाहर कर दिया गया था।

Yo Yo टेस्ट कैसे पास करें?

अगर आप भी Yo Yo टेस्ट की तैयारी करना चाहते हैं, तो ये बातें ध्यान रखें:

रेगुलर रनिंग और कार्डियो एक्सरसाइज करें।

स्प्रिंट ट्रेनिंग (20 से 40 मीटर दौड़ बार-बार) करें।

हाई इंटेंसिटी इंटरवल ट्रेनिंग (HIIT) अपनाएँ।

डाइट और रेस्ट का सही ध्यान रखें।

धीरे-धीरे अपनी स्टैमिना और स्पीड बढ़ाएँ।

निष्कर्ष:

Yo Yo टेस्ट ने क्रिकेट की दुनिया में फिटनेस का नया अध्याय खोल दिया है। अब केवल बैट या बॉल से अच्छा खेलना ही काफी नहीं, बल्कि शरीर को भी पूरी तरह से फिट रखना जरूरी है। भारतीय क्रिकेट में इस टेस्ट की वजह से खिलाड़ियों की फील्डिंग और कुल मिलाकर फिटनेस लेवल दुनिया में सबसे बेहतरीन हुआ है।

तो, अगर आप क्रिकेटर बनने का सपना देख रहे हैं, तो याद रखिए – Yo Yo टेस्ट पास करना अब पहली सीढ़ी है।

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